आज से पचास बर्ष पहले की बात है। उस समय गाँव शहर से कटे हुए थे। गाँव में मनोरंजन का साधन स्वांग अर्थात तमाशा होता है। गाँव के लोग सिनेमा से बहुत दूर थे।
उस समय गाँव में कभी कभी नट लोग अपना तमाशा दिखाने आते थे। नट एक घुमक्कड़ जाति है यह एक गाँव से दूसरे गाँव मे जा जाकर अपना तमाशा दिखाते थे।
उस समय शहर में सर्कस दिखाया जाता था। सर्कस में कलाकार झूलौ पर इधर से उधर आते जाते थे उनका काम भी बहुत खतरनाक होता था । परन्तु उनके नीचे जाल बंधा होता था जिससे वह उसके ऊपर ही गिरते थे ।
लेकिन नट जो खतरनाक खेल दिखाते थे उसमें कोई जाल नही होता था। यदि बैलैन्स खराब हुआ तो नीचे मौत ही दिखाई देती थी।
उसी समय हमारे गाँव में नट आये और उनके मालिक शंकर ने सारे गाँव में खबर पहुचाई कि आज आपके गाँव मे नटौ का तमाशा दिखाया जायेगा।
शंकर ने गाँव की ऐसी जगह तमाशा दिखाने का प्रबन्ध किया जहाँ पर गाँव के अधिक लोग जमा होसकै।
धीरे धीरे खेल के स्थान पर भीड़ बढ़ने लगी और शंकर ने अपने सहायकौ के साथ अपने खेल को दिखाने के लिए इन्तजाम करना आरम्भ कर दिया।
इसमे शंकर के परिवार के बच्चे भी शामिल थे। शंकर का पूरा परिवार यहीं काम करता था। इनके बच्चे स्कूल जानही सकते क्यौकि इनका कोई स्थायी निवास नही होता है। यह एक तरह से घुमक्कड जाति कहीं जाती है।
इन लौगौ की शादियां भी आपस के ग्रुपौ मे हो जाती है। इनके बच्चे भी इनके साथ खेल दिखाते है।
जब शंकर ने खेल दिखाना आरम्भ किया तब सबसे पहले उसकी छोटी बेटी एक खम्भे फर एक लाठी लेकर चढ़गयी। इस खेल में दो खम्भे आपस में बीस फुट से भी अधिक दूरी फर गाढँकर उनके ऊफर एक मजबूत रस्सी बांधी गयी थी।
अब शंकर की नन्ही सी परी को अपने पेट की खातिर इस रस्सी पर अपना बैलेंश बनाकर एक छोर से दूसरे छोर तक जाना था। यदि उसका बैलेंश थोडा़ भी खराब हुआ वह सीधे बारह फीट से नीचे जमीन पर गिरेगी।
लेकिन पेट की खातिर यह लोग ऐसे खतरनाक खेल हर रोज दिखाते है। यह खेल उस बच्ची ने बहुत ही विश्वास के साथ दिखाकर वाह वाही लूट ली। वह एक छोर से दूसरे छोर तक गयी।
इसके बाद इसी रस्सी पर एक लड़के ने साइकिल चलाकर सभीको मन्त्रमुग्ध कर दिया।
बीच में और भी बहुत से खेल दिखाये गये जैसे कला बाजी आदि खेल दिखाये। एक पुरुष ने अपने दाँतौ से गाडी़ खीचकर दिखाई। इस तरह के अनेक खेल दिखाये जाते रहे।
सबसे अंत में शंकर को सबसे खतरनाक खेल दिखाना था। यह खैल था कि एक लाठी मे लगे हुए भाले को ऊपर उछाल कर अपनी छाती पर सीधा गिराना। यदि वह थोडा़ सा भी चूक गया तब वह भाला आख नाक मुँह कही पर भी लग सकता है और इसके बाद क्या होगा यह सोचकर वदन में कप कपी बंध जाती है।
शंकर ने अपनी छाती पर एक लोहे की मौटी प्लेट बांध रखी थी।।जैसे ही उसने उस भाले को ऊपर फैका वहाँ बैठे हुए लोगौ की साँस रुक गयी जब वह भाला उसकी छाती पर गिरा तब लोगौ को विश्वास हुआ।
इन खतरनाक खेल दिखाकर इन नटौ का पेट ही भर पाता है यह उस समय और कोई काम धन्धा करना नहीं जानते थे। इनके बच्चौ ने कभी स्कूल का मुँह नहीं देखा है। अतः यह इसी तरह खतरनाक खेल दिखाकर अपनी रोजी रोटी कमाते थे। इनको गाँव वाले अनाज देकर जाते है। कुछ लोग पैसा भी देते है
आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतू रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
26/08/२०२२
शताक्षी शर्मा
28-Aug-2022 11:27 AM
Nice
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shweta soni
27-Aug-2022 07:43 PM
Nice
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Shnaya
27-Aug-2022 11:19 AM
बहुत खूब
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